विशेष प्रतिनिधी
पुणे : राष्ट्रवादी कॉँग्रेसचे खासदार डॉ. अमोल कोल्हे यांच्या व्हाय आय किलड गांधीजी चित्रपट वादात सापडला आहे. ४६ मिनिटांच्या या चित्रपटात नथुराम गोडसेची भूमिका केलेल्या डॉ. कोल्हे यांचे न्यायालयातील भाषण अत्यंत तडफदार झाले असून गांधीजी एक हारा हुआ जुआरी था, मुसलमानोंपर दॉँव पर दॉँव लगाते चले गए.NCP MP Dr. Amol Kolhe’s eloquent speech supporting Nathuram’s role , Gandhiji is a loser gambler, goes on betting on Muslims,
भारत की राजनिती से गांधीजीके प्रस्थानसेही भारत का भाग्योदय होगा. महाशक्ती बनके उभरेगा. नहीं तो यह देश पाकिस्तानके अधिपत्य में चला जाएगा, असे भाषण त्यांनी केले आहे.गांधीजीकी व्यक्तीगत महत्वाकांक्षा राष्ट्रहितपर इतनी भारी पडी की राष्ट्रके दो तुकडे हो गए, असे म्हणत फाळणीला त्यांनी गांधीजींनाच जबाबदार धरले आहे.
डॉ. अमोल कोल्हे यांचे हिंदीतील हे भाषण अत्यंत तडफदार झाले असून ते करत असताना न्यायालयातही टाळ्या वाजतात. नथुराम गोडसेच्या भूमिकेतील डॉ. कोल्हे म्हणतात, जिस तरह एक हारा हुआ जुआरी दॉँव पर दॉँव लगाता जाता हैै उसी तरह गांधीजी भी मुसलमानोंपर दॉँव लगाते चले गए.
केवळ इसी आशा में की वह एक दिन मुसलमानोंकाभी नेतृत्व कर सके इसी आशा में वह मुसलमानोंकी उचित और अनुचित मॉँग को भी पूरी करने लगे. गांधीजीकी इसी नितीसे प्रेरीत होकर द्वितीय विश्वयुध्द के शुरू होनेसे पहले एप्रिल १९४० में जिना ने दो राष्टÑोंके निर्माण की मॉँग की. अॅँग्रेजोंका यह बहुत पसंत आई. १९४२ में कॉँग्रेसने गांधीजीके नेतृत्व में भारत छोडो आंदोलन किया.
पर १९४५ में वे जर्मनी और जपान की हार के बाद अॅँग्रेजोंसे बात करने लगी.इस प्रक्रिया में कॉँग्रेस जीना की हिंसाकी राजनितीके आगे झुकने को मजबूर हो गई. भारत का एक तिहाई हिस्सा भारताही दुष्मन बन गया. पश्चिमी पाकिस्तानमें या तो हिंदू मार डाले गए या उनका सबकुछ नष्ट हो गया. पूर्व पकिस्तानका यही हाल हैै
यह रक्तपात शांती और अहिंसाकी निती पर चलने वाले उन्ही गांधीजीके कारण हुआ जिन्होंने अपने प्रत्येक भाषण और लेख में क्रांतीकारीयोंकी निंदा की. गांधीजी के विरोध के बावजूद मार्च १९३० में कॉँग्रेसने शहीद भगतसिंग की प्रशंसा का प्रस्ताव पारित किया तब गांधीजी अपनी इस पराजयको नहीं भुले. मुंबईके गव्हर्नरपर गोली चली तो गांधीजीने उसका कारण कॉँग्रेस के इस प्रस्तावको बताया.
सुभाषचंद्र बोसने गांधींजींका विरोध किया तो परिणामस्वरुप गांधीजी सुभाषचंद्र बोसकोभी अपना शत्रू समझने लगे. उनका कॉँग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर गांधीजीने कहा सुभाष की जीत गांधी की हार हैै. जब तक उनको कॉँग्रेस अध्यक्षपदसे नहीं उतारा गया उनका क्रोध शांत नहीं हुआ.
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