“मेरे बहुत से मित्र पूछते हैं कि, नायडू जी आप तो यात्रा के बहुत शौकीन हैं, हमेशा लोगों से मिलते रहना पसंद करते हैं…. तो इस लॉकडाउन में कैसे समय व्यतीत कर रहे हैं?” अपने मित्रों के लिए उपराष्ट्रपति व्यंकैय्या नायडू जी ने लिखी यह फेसबुक पोस्ट….
आइए इस वर्तमान संकट से उबरने के लिए अपने मन मस्तिष्क को साथ लाएंये पोस्ट मेरे अनेकों शुभचिंतक मित्रों की चिंता के उत्तर के रूप में लिख रहा हूं। वो जानना चाहते थे कि मुझ जैसा यात्रा का शौकीन व्यक्ति, जो लोगों से मिलना, बात करना पसंद करता है, वो इस बंदी की अवधि को कैसे व्यतीत कर रहा है!उनके मन में एक ही विचार घूम रहा है एक व्यक्ति जो बिना एक भी दिन का अवकाश लिए आदतन काम करता रहा हो, वो एक ही स्थान पर इतने दिन बंधा कैसे रह सकता है!!!पूर्ण बंदी की पहली घोषणा के शीघ्र बाद ही प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी से टेलीफोन पर चर्चा के दौरान उन्होंने मज़ाक में ही कहा भी कि मुझ जैसे लोगों के लिए एक स्थान पर इतने समय तक बंधे रहना तो वस्तुत: एक कड़ी परीक्षा ही होगी।संयोगवश मेरे प्रिय लेखकों में से एक डा. सी नारायण रेड्डी द्वारा रचित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, प्रसिद्ध तेलुगु काव्य ‘ विश्वंभरा ‘ की ये सारगर्भित पंक्तियां मेरी मन: स्थिति को सही सही प्रतिबिंबित करती हैं –
“चाहे साधुता हो या पाशविकता, चाहे सत्कर्म हों या पाप, चाहे स्वच्छंदता हो या बंधन, चाहे करुणा हो या क्रूरता, पहला बीज मानव मस्तिष्क में ही रोपा जाता है,यही विश्व दर्शन का सार है और जीवन का शाश्वत सत्य भी”
अतः हर चीज़ का मूल तो मस्तिष्क में ही है। किसी भी चुनौती के सामने, हमें अपने मस्तिष्क को उस अनहोनी को स्वीकार करने और उसका समाधान करने के लिए तैयार और प्रशिक्षित करना होता है। अगर हम इस छोटी सी गुत्थी को समझ लें तो हम किसी भी परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार और आत्मसात कर सकते हैं।1970 के दशक के अपने विद्यार्थी जीवन के दिनों से ही कभी ऐसा अवसर नहीं आया कि मुझे एक ही स्थान पर इतना लंबा समय व्यतीत करना पड़ा हो। पिछले कई वर्षों से अनवरत भ्रमण करना, नित नए लोगों से मिलना, उनसे बात करना, यही मेरा शौक रहा है। सिवाय आपातकाल के, इस प्रकार बंधन में रहना, न मेरी प्रकृति में है , न ही मेरी प्रवृत्ति में। मेरे लिए भी ये नया अनुभव ही है और मैं इस नई स्थिति का भरसक उपयोग कर रहा हूं,अपने मन मस्तिष्क को इस की अनिश्चितता को निर्विकार समभाव से स्वीकार करने के लिए प्रशिक्षित कर रहा हूं।
मैं अपने समय का रचनात्मक सदुपयोग कर रहा हूं, अच्छी पुस्तकें पढ़ रहा हूं जिससे मेरा अपना दृष्टिकोण व्यापक बनता है, अपने विचारों को अपने स्वजनों के साथ साझा करता हूं, उनसे विचार विमर्श करता हूं। ये सब संभव हो सका है क्योंकि मैंने अपनी जीवन चर्या में छोटे लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। निःसंदेह मेरी यात्राएं सीमित हो गई हैं लेकिन मेरे मस्तिष्क में निरंतर नए विचार और नई योजनाएं जन्म ले रही हैं। मैंने ऐसा कुछ भी विशेष नहीं किया है सिर्फ अपने मस्तिष्क को चिंतन की एक नई दिशा दे दी है।पहले की तरह आज भी मेरी दिनचर्या सुबह 5 बजे से प्रारंभ हो जाती है। अगले आधे घंटे मैं श्री अन्नामैय्या कीर्तन सुन कर भाव विभोर होता हूं। एक कप ग्रीन टी तथा हल्दी, जीरा, अदरक, दालचीनी, नींबू और शहद का गर्म काढ़ा मुझे ऊर्जा देता है। शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए मैं बादाम, किशमिश और अंकुरित अनाज लेता हूं।
सुबह 6 से 7 बजे तक मैं तेलुगु, हिंदी और अंग्रेज़ी के समाचार पत्र प्रायः ऑनलाइन ही पढ़ता हूं। जरूरी समाचारों और लेखों को चिन्हित कर लेता हूं तथा भविष्य में संदर्भ के लिए एकत्र करता रहता हूं। सुबह 7 बजे से मैं और मेरी पत्नी श्रीमती उषम्मा उपराष्ट्रपति भवन के सुरम्य वातावरण में लगभग आधा घंटा सैर करते हैं जिसके बाद 15 मिनट हल्का योगाभ्यास करता हूं। सुबह 8 बजे से आधा घंटा मैं अपने मित्रों और स्वजनों से बात करता हूं। और 8.45 पर हम दोनों सुबह का नाश्ता करते हैं।
9.15 से 10 बजे तक में सरकार से संबद्ध विषयों पर स्थिति की समीक्षा करता हूं। जनता से प्राप्त सुझावों के आधार पर, मैं अपने विचार और दृष्टिकोण मंत्रियों और अधिकारों से साझा करता हूं। आवश्यकता अनुसार, मैं जरूरी सूचना या फीडबैक प्रधानमंत्री को बताता हूं …सुबह 10 बजे के बाद, मैं उपराष्ट्रपति भवन के लॉन में लगे विशाल वृक्षों की छांव में बैठ कर, राज्य सभा सचिवालय तथा उपराष्ट्रपति सचिवालय के अधिकारियों से आवश्यक विषयों पर, फोन पर चर्चा करता हूं तथा आवश्यक फाइलें निपटाता हूं। इस बीच श्रीमती उषम्मा भी अपनी पूजा और अन्य कार्य समाप्त कर, साथ अा जाती हैं।11 से 12.30 बजे तक अगले डेढ़ घंटे हम अपने मित्रों और पुराने सहयोगियों से फोन पर, उनका कुशल क्षेम लेते हैं। श्रीमती उषम्मा नियमित रूप से नेल्लौर और उसके आस पास रहने वाले मित्रों, संबंधियों, सहयोगियों के कुशल क्षेम जानने का ध्यान रखती हैं। इसके बाद हम, क्रमश: चेन्नई और हैदराबाद में अपने दामाद, बेटी, बेटे, पुत्रवधू और पौत्री,पौत्र से बात करते हैं। और यदि कोई जरूरी विषय हो तो चर्चा करते हैं।
ठीक 1 बजे हम मेरी मौसी सुशीलाम्मा जी, जो हमारे ही साथ रहती हैं, उन के साथ दोपहर का भोजन करते हैं। उसके बाद मैं एक घंटे जा विश्राम लेता हूं। दोपहर 3 से 4 बजे तक हम श्री घंटशाल, सुशीलम्मा, जानकी और श्री एस पी बालासुब्रमण्यम जैसे महान संगीतकारों के पुराने तेलुगु गीतों और संगीत का आनंद लेते हैं या फिर कोई छोटी फिल्म देखते हैं। 4 बजे शाम को एक कप चाय से तरोताजा हो कर मैं अपने लॉन में अपनी पसंदीदा जगह वापस लौट आता हूं। पेड़ के नीचे बैठ कर मैं सरकारी विषयों पर विचार विमर्श करता हूं तथा श्री विक्रांत एवम् अन्य अधिकारियों को आवश्यक निर्देश देता हूं। एक बार फिर मैं और श्रीमती ऊषम्मा अपने मित्रों से बात कर उनका कुशल क्षेम पूछते हैं और वहां के स्थानीय समाचार और जानकारी लेते हैं। पुराने दिनों की मधुर स्मृतियां हमें खुशी देती हैं।सप्ताह में कम से कम एक बार मैं स्वर्ण भारत ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे समाजसेवा के कार्यों के बारे में अवश्य जानकारी लेता हूं तथा आवश्यक सुझाव देता हूं। स्वर्ण भारत ट्रस्ट के वृद्धाश्रम में रहने वाले वृद्ध जनों की सेवा, उनका कुशल क्षेम जानना, इस सेवा भाव से प्राप्त सुख और संतोष का तो कोई और विकल्प मेरे लिए है ही नहीं।
हम उपराष्ट्रपति भवन में घूमते हुए वहीं पीछे हो रही बागवानी देखने जाते हैं तथा वहां के माली को देखरेख के आवश्यक निर्देश भी देते हैं। उपराष्ट्रपति भवन के प्रांगण में चुनिंदा ताज़ी हरी सब्जियां और पत्तेदार सब्जियां पैदा की जा रही है। हम रसायन मुक्त जैविक कृषि उत्पाद और पारंपरिक तेलुगु व्यंजन ही पसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त हम नियमित रूप से प्रतिदिन अंडा खाते हैं।श्रीमती उषम्मा को हमारे प्रांगण में रहने वाले कर्मचारियों के परिवारों को बगीचे में पैदा हो रही ताज़ी हरी सब्जियां और पत्तेदार सब्जियां बांटना बहुत पसंद है।
शाम को 6 बजे हम उपराष्ट्रपति भवन के प्रांगण में स्थित श्री अंजनेयस्वामी के छोटे से पुराने मंदिर के निकट बैठते हैं और भजन के आनंद भाव लीन हो जाते हैं। हम दोनों अगले दिन बनाए जाने वाले व्यंजनों के बारे में बात करते हैं तथा कुक श्री केदार को बनाए जाने वाले व्यंजनों के बारे में आवश्यक निर्देश देते हैं।
शाम को 7 बजे, मैं दिन भर के समाचारों तथा घटनाक्रम की समीक्षा करता हूं। हम पुराने तेलुगु गीतों का आनंद लेते हैं। तत्पश्चात, हम जल्दी ही, शाम 8.30 बजे तक रात का भोजन कर के, शयन के लिए चले जाते हैं।
जब भी समय मिलता है मैं उपराष्ट्रपति निवास में स्थित पुस्तकालय के अपने निजी संकलन से किताब निकाल कर पढ़ता हूं। इसके अतिरिक्त मैं राष्ट्र नायकों की जीवनी पढ़ता हूं, संविधान सभा तथा अन्य विधाई संस्थाओं में दिए गए भाषणों को पढ़ता हूं। वैश्विक स्तर पर हो रहे शोध और अनुसंधान के बारे में मैं नवीनतम जानकारी रखने का प्रयास करता हूं और उनमें से जो महत्वपूर्ण हैं उनके विषय में अपने निकट मित्रों से चर्चा भी करता हूं। प्रोटोकॉल के अनुसार उपराष्ट्रपति सचिवालय के डॉक्टर हमारे स्वास्थ्य की जांच करते रहते हैं। संक्षेप में, बंदी के दौरान यही हमारी दिनचर्या है।
अपने यहां चिकित्सा, सुरक्षा तथा स्वच्छता कर्मियों को छोड़ कर, मैंने आईएएस अधिकारियों तथा सचिवालय के अन्य अधिकारियों को घर से ही ऑनलाइन काम करने की सलाह दी है। मेरे निजी स्टाफ तथा रसोई में काम करने वाले कई सदस्यों को भी सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर ही आने को कहा गया है। जब भी आवश्यक होता है मैं उपराष्ट्रपति सचिवालय और राज्य सभा सचिवालय के अधिकारियों से फोन पर ही चर्चा कर लेता हूं और आवश्यक निर्देश दे देता हूं।
मेरे संज्ञान में आने वाले विभिन्न विषयों की समीक्षा के अलावा मैं अनेक भाषाओं में समाचार पत्रों में विविध विषयों पर आलेख लिखता रहा हूं। मैं WHO, ICMR , केन्द्र सरकार तथा किसी प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक के विचारों/वक्तव्यों का बारीकी से अध्ययन करता हूं और उनमें से जो महत्वपूर्ण होते हैं उन्हें ट्विटर के जरिए लोगों के साथ साझा करता हूं जिससे लोगों को भी जानकारी रहे। इसके अलावा मैं विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ अपने मित्रों के साथ भी चर्चा करता रहता हूं।
वस्तुत: ये सब मेरे लिए कुछ नया नहीं, ये काम तो मैं वर्षों से करता रहा हूं।मैं फिर से स्पष्ट कर दूं कि मैं यह पोस्ट अपने मित्रों के कहने पर लिख रहा हूं।
हर चुनौती एक अवसर भी ले कर आती है, इस कठिन समय के भी अपने कुछ लाभ हैं। सबसे मुख्य बात तो यह कि मैं अपनी सहधर्मिणी श्रीमती उषम्मा के साथ पर्याप्त समय व्यतीत पा रहा हूं जो मैं 1970 में हमारे विवाह के बाद कभी न दे सका। मेरी पत्नी के लिए, साथ के ये पल विशेष हैं। हमारे विवाह के बाद मैंने कभी भी एक साथ दस दिन हमारे घर पर नहीं गुजारे। कारण स्पष्ट ही है।
दूसरा, मेरे परिवार के सभी सदस्य, यद्यपि वे अलग अलग शहरों में रह रहे हैं, फिर भी प्रतिदिन एक दूसरे से संपर्क में रहते हैं। तीसरा, मुझे वरिष्ठ नेताओं जैसे श्री एल के आडवाणी जी, डॉ मुरली मनोहर जोशी जी, डॉ मनमोहन सिंह जी, श्री देव गौड़ा जी, श्री ए के एंटनी जी, श्री शांता कुमार जी, श्री राम नाईक जी, श्री मोतीलाल वोरा जी, श्री अहमद पटेल जी, श्री केशुभाई पटेल जी, डॉ एम एस स्वामीनाथन जी, मेट्रो मेन श्री ई श्रीधरन जी, श्रीमती जे हैमावदियाम्मा, श्री तुरलापति कुटुंब राव, श्री पी वी चेलापती राव आदि बहुत से अन्य स्वजनों से, जिनके साथ मैंने अतीत काम किया, उनसे बात करने का अवसर मिला। मैं विभिन्न दलों के वरिष्ठ सांसदों और वरिष्ठ पत्रकारों के भी संपर्क में रहता हूं। ये सौहार्दपूर्ण बातचीत, जो प्रायः संभव नहीं हो पाती, वस्तुत: हमें खुशी देती है।
इस बंदी ने हमारे उन पारिवारिक रिश्तों को एक बार पुनः दृढ़ किया है जो तेज़ गति ज़िन्दगी में कई वजहों से कहीं क्षीण पड़ रहे थे। एक प्रकार से इस संकट ने परिवारों को फिर से इकट्ठा होने, साथ रहने और पुराने पारिवारिक जीवन को पुनर्जीवित करने का अवसर दिया है, जो भारत की पहचान रहा है।
कई रिपोर्टों से जाहिर हुआ है कि राष्ट्रीय राजधानी में इस दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी अाई है। यह हमको रुक कर सोचने पर मजबूर करता है कि हमने आधुनिकीकरण की खोज में प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाया है। उपराष्ट्रपति निवास में चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ गई है, रोज़ ही कुछ मोर दिख जाते हैं, वैज्ञानिकों के अनुसार ये परिवर्तन आशान्वित करने वाले हैं जो पर्यावरण के संतुलन को बहाल कर रहे हैं। कोविड 19 संक्रमण हमें स्वस्थ जीवन शैली अपनाने को मजबूर कर रहा है। अब जोर अनापशनाप खाने की जगह सोच समझ कर पौष्टिक खाने पर है।
हमारे प्रधानमंत्री तथा राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा समय रहते उठाए गए कदमों के अभीष्ट परिणाम दिखने लगे हैं।सम्मिलित प्रयास और एक दूसरे से परस्पर सहयोग ही इस संकट से उबरने का मंत्र है। पुरानी कहावत ‘उपचार से प्रतिकार भला’ आज भी प्रासंगिक है। इस संक्रमण को फैलने से रोकने का एक मात्र उपाय है – सोशल डिस्टेंसिंग तथा सरकार, स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करना।
कुछ विकसित देशों में गंभीर हालात की तुलना में, अपनी 130 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाला भारत इसके असर को जन समर्थन के साथ समय से लिए गए कदमों के कारण ही न्यूनतम रख सका है । यह संभव हो सका हमारे अनुशासन और हमारे समर्थ नेतृत्व की दूर दृष्टि के कारण।
उल्लेखनीय है कि यह विजय जनता का विश्वास अर्जित करके हासिल हुई है न कि ज़ोर जबरदस्ती या दमन से।मुझे विश्वास है कि ‘ एक भारत’ इस संक्रमण के विरुद्ध अभियान में विजयी होगा। इस संक्रमण को सीमित रखना सिर्फ राजनैतिक इच्छाशक्ति के कारण ही नहीं बल्कि विशेषज्ञों के सहयोग, अधिकारियों के प्रशासकीय कौशल तथा जनता के समर्थन के कारण संभव हो सकता है।
हमें कारोना वायरस के कारण पैदा हो रहे तनाव से उबरने के लिए भी उपाय करने होंगे।बेहतर होगा कि कोरोना से संबंधित समाचारों को सिर्फ दिन में एक बार देखा जाय। दिन भर समाचार देखने से मानसिक त्रास और भ्रम बढ़ेगा जो हमारी मन: स्थिति और स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि लोग यथा अपेक्षित परहेज़ बरत रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग रख रहे हैं तथा जरूरी होने पर स्वयं को अलग भी रख रहे हैं । चिंता, उत्तेजना हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी। अधिक उत्साह या तनाव हमारे मन मस्तिष्क को भी उत्तेजित करेगा। भगवद्गीता में कहा गया है साहसी होना अपने आप में दिव्य गुण है। हम इस गुण को अपनाएं। साहस रखें और ईश्वर में विश्वास रखें। यह जरूरी है कि सुबह उठने के तुरंत बाद और रात में सोने से पहले मोबाइल फोन के अनावश्यक प्रयोग से बचें। इसी प्रकार टीवी या कंप्यूटर के सामने देर तक घंटों बैठे रहना भी ठीक नहीं। सुबह की भोर प्रकृति के साथ एकात्म होना आनंद देता है। नीले आसमान में उदय होने अरुणाभ सूर्य को निहारना अपने आप में दिव्य अनुभव है जो आपको सकारात्मकता से भर देता है।
वर्तमान हालात के अपने लाभ हैं। आइए इस विषम चुनौती को अवसर में बदल दें। समय का सदुपयोग करने के अनेक तरीके हैं जिसे विकास और दीर्घकालीन योजना बनाने में, विशेषकर युवाओं द्वारा, उपयोग में लाया जा सकता है। वे परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताने, खाना बनाने या सफाई करने जैसे रोजमर्रा के कामों में परस्पर हाथ बंटाने से अभिभावकों पर बोझ कम कर सकते हैं। युवा अपने बुजुर्गों के साथ समय बिता कर, Share and Care अर्थात मानव सेवा से माधव सेवा, जैसे जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सीख सकते हैं। इस बंदी ने हमें अपने पुराने मित्रों और संबंधियों से मिलने का, उनसे पुनः संपर्क स्थापित करने का स्वर्णिम अवसर दिया है। अपनी पुरानी मित्रता पुनर्जीवित कीजिए और संबंधियों के साथ संबंधों को और दृढ़ कीजिए। विद्यार्थी इस समय का सदुपयोग अपनी मातृ भाषा के साथ हिंदी, अंग्रेज़ी और कम से कम एक और नई भाषा सीखने में कर सकते है। नियमित व्यायाम करने में करें। इस समय में आप अपनी रुचि की कोई भी कला जैसे संगीत,नृत्य, पेंटिंग, पाक कला, योग आदि सीख सकते हैं। मैं स्वयं अपने पौत्र और पौत्री को इनमें से कुछ सीखने तथा किसी एक पड़ोसी प्रांत की भाषा सीखने के लिए प्रेरित कर रहा हूं। पंचतंत्र सहित चंदामामा, बालमित्र जैसी पुस्तकों को ऑनलाइन ही पढ़ने से आपका अनुभव, चिंतन विस्तृत होगा।यह आपको हमारी समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं के बारे में भी अवगत कराएगा।अभिभावकों और बच्चों को यह समझना चाहिए कि पाठ्यक्रम आधारित शिक्षा के अलावा यह ज्ञान भी एक व्यक्ति के रूप में आपके चतुर्दिक सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी है।
आइए हम एनजीओ और समाजसेवी संस्थाओं के साथ हाथ मिला कर अपनी सेवा समर्पित करें तथा गरीबों और जरूरतमंदों की कठिनाइयों को दूर करें।मैं यह देख कर प्रसन्न हूं कि किस तरह देशवासियों ने प्रधानमंत्री के ताली बजाने और दीप, मोमबत्ती जलाने के आह्वाहन को व्यापक जन समर्थन दिया।इससे हमने इस अभियान की अग्रिम पंक्ति में खड़े उन योद्धाओं जैसे डाक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस कर्मियों, स्वच्छताकर्मियों के साथ एकता और समर्थन दिखाया जो अपनी जान की परवाह किए बिना हमें इस महामारी से बचाने के लिए दिन रात प्रयास कर रहे है। संकट के इस समय में हमारे सम्मिलित प्रयास ही अभीष्ट सकारात्मक परिणाम सुनिश्चित करेंगे और हमें इस संकट से उबरने में मदद करेंगे। हम अकेले नहीं हैं, कोरोना वायरस को हराने के इस साझे अभियान में 130 करोड़ भारतवासियों का सहयोग और समर्थन हमारे साथ है। आइए हम अपने फौलादी संकल्प और इच्छा शक्ति को और दृढ़ करें।
ICMR ने चेताया है कि एक भी संक्रमित व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है। यह गंभीर चेतावनी है। इसकी गंभीरता को ध्यान में रखते हुए ही बंदी को बढ़ाया जाना जरूरी था। आइए डॉक्टरों के परामर्श का अक्षरशः पालन करें तथा हमारी ही सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों का स्वेच्छा से पालन करें। हमारे एकमत संकल्प और एकाग्र समर्पण के सामने कुछ भी असंभव नहीं है।
अपने हाल के संबोधन में प्रधान मंत्री ने आह्वाहन किया … सप्तपदी का तात्पर्य है सात कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक पालन – इस प्रकार सप्तपदी को नए अर्थ दे दिए। पूर्ण बंदी को बढ़ाने का यह निर्णय वैश्विक स्थिति की समीक्षा करने के बाद, राज्य के मुख्यमंत्रियों तथा विशेषज्ञों से चर्चा कर के लिया गया है। कहना न होगा कि बंदी को आगे बढ़ाना, ढील देना या बंदी को समाप्त करना – ये सब पूरी तरह से हमारे अपने आचरण पर निर्भर करेगा। ये सच है कि हर किसी को भारत के उप राष्ट्रपति जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होंगी। फिर भी हर किसी को इन सीमाओं के भीतर रह कर भी चुनौती का सामना करने को तत्पर रहना होगा। प्रतिदिन सोच समझ कर अपनी दिनचर्या की योजना बनाएं। आइए इस कठिन डगर पर संकल्प और संयम के साथ एक साथ आगे बढ़ें। आइए इस महामारी से बढ़ कर लोहा लें। एक संयमित और करूणावान मानस ही कुछ हासिल कर सकता है। मेरे प्यारे देशवासियों और मित्रों को यही मेरा परामर्श है। अंततः विजय हमारी ही होगी।जय हिन्द!
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