विशेष संवाददाता
नई दिल्ली : एक जमाना था जब बंगाल पूर्वी एशिया के द्वार के रूप में मशहूर था। बंगाल के पास वो सब था जो किसी भी विकाशील राज्य के पास होना चाहिए। कोलकाता जैसा चमचमाता विशाल शहर, दुनिया भर तक समुद्र मार्ग से संपर्क के लिए बेहतरीन बंदरगाह, भारत के तमाम शहरों तक रेलवे का विशाल जाल, खनिज संपदाओँ से भरे भंडार, चाय के बागान और ढेरों अलग अलग उद्योग धंधों से बंगाल संपन्न था।
कहा जाता है कि सिगंपुर के प्रथम प्रधानमंत्री ली कुवान यू सिंगापुर को कोलकाता की तरह ही विकसित करना चाहते थे। लेकिन 1960 के दशक के बाद बंगाल में वामपंथियों के नक्सल आंदोलन और फिर राज्य की सत्ता पर सीपीएम के काबिज होने से बंगाल कई दशक पीछे चला गया। बताया जाता है कि कोलकाता को लेकर ही 2008 में ली कुवान यू ने अपने पुत्र से कहा था कि “जरा सी लापरवाही ही तो सिंगापुर भी कोलकाता बन सकता है”।
बंगाल में 1977 से लेकर 2000 तक बिना किसी रोक टोक के एक छत्र राज करने वाले ज्योति बसु को वामपंथी किसी क्रांतिकारी से कम नहीं मानते हैं। वो तो बसु को एक महान नेता के साथ साथ तमाम उपाधियां देते हैं। लेकिन हकीकत में बंगाल की दुर्गति के लिए यदि कोई अकेला व्यकित जिम्मेदार है तो वो सिर्फ ज्योति बसु ही हैं। बसु के कम्यूनिस्ट शाषन में बंगाल से उद्योग धंधे तो चौपट हुए ही बड़ी तादाद में लोगों ने बंगाल से पलायन भी किया।
1950 में कोलकाता की कुल आबादी थी 45 लाख थी, जबकि मुंबई और दिल्ली की आबादी क्रमश 26 लाख और 14 लाख थी। लेकिन साल 2011 के जनगणनना के मुताबिक कोलकाता की कुल आबादी 1.40 करोड़ थी, तो वहीं मुंबई और दिल्ली की क्रमश 1.90 करोड़ और 1.65 करोड़ की आबादी रही। साफ है कि बंगाल से न सिर्फ आम लोगों ने पलायन किया बल्कि शिक्षित, प्रशिक्षित लोगों ने भी यहां से बाहर जाना ही ठीक समझा।
बंगाल में जिस किस्म की राजनीति हुई है उसे देखकर साफ हो जाएगा कि वामपंथी विकास को प्राथमिक्ता कभी नहीं देते। वामपंथ की पूरी फिलॉसफी जनता को काबू में रखकर सत्ता पर काबिज रहना है। ज्योति बसु इस खेल में माहिर थे। यही वजह है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा काट रहे लालू यादव उन्हें अपना राजनीतिक गुरू मानते थे।
अपने 24 साल के कार्यकाल में ज्योति बसु का एक मात्र लक्ष्य था- हर कीमत पर सीपीएम की सरकार को सत्तासीन रखना। इस लक्षय की पूर्ती के लिए बंगाल में कम्यूनिस्टों ने यूनियनों और अपने पार्टी संगठनों के जरिए समानांतर व्यवस्था खड़ी कर दी। मसलन किसी को कोलकाता में टैक्सी चलानी है तो उसे पहले कम्यूनिस्ट पार्टी का सदस्य बनना होगा, किसी को सरकारी नौकरी करनी है तो उसे भी पार्टी की सदस्यता लेनी होगी और पार्टी फंड में एक फिक्स रकम अपनी तनख्वाह से हर महीने जमा करना होगा, आपको उच्च शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी में पढ़ना